मौत के हिज्जे ना कर आ अमन की बात कर।
बेरुखी मत ठाने इन्सां चमन की बात कर,
हवा और दवा भी अब चोर लूटे खा रहे,
आबोहवा सुधार कर आ हवन की बात कर।
दवा की किल्लत से बेमौत नादां मर रहे,
जिन्दगी को जीत ले नहीं कफन की बात कर।
इक दूजे से अदालत सी अदावत छोडकर,
आ जाजम पर बैठ जा मत दमन की बात कर।
दारा, सिकन्दर, जूलियस, चंगेज खाँ मिट गये,
जुल्मोसितम को छोड़कर आ मिलन की बात कर।
कयामत के कहर ने मानव को हिला डाला।
अब तो दूर दोजख से रह सुमन की बात कर।
कौन रह पाया मुकम्मल दुनिया में आजतक,
सब मिट जाएँगे 'सुलभ' तू जतन की बात कर।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश