क्यों चहुंओर पसरा सन्नाटा,
कैसी दुख भरी तस्वीर है।
हर हृदय छायी खामोशी,
माथे चिंता की लकीर है।
न मालूम कब, क्या होगा,
बड़ी विचित्र तकदीर है।
जग को है जकड़ा जिसने,
वह कोरोना की जंजीर है।।
ज़रा सी तन की बेचैनी से,
हो जाता मन गहन गंभीर है।
स्वस्थ तन-मन, जीवन शैली
आज जीवन की बेनजीर है।।
सुखी हृदय हैं जो वे सोच रहे,
निकट न आये विपदा पीर है।
दुख से जिनके मन हैं हारे,
उन नयनों से बहता नीर है।।
आओ लौटें प्रकृति की ओर,
स्थिति विकल बड़ी गंभीर है ।
करें पवित्र वायुमंडल को हम,
हवन-दीप हृदय धर धीर है।।
हो जाएं सबके मन आनंदित,
यही प्रार्थना 'कंचन' तकरीर है।
भेजें संवेदनाएं मधुर भाव से,
सुख की राह यही तदबीर है।।
••• प्र.अ. प्रा.वि. गिझौड
कम्पोजिट बिसरख,
गौतम बुद्ध नगर (उ.प्र.)