ले खड्ग, तलवार मन में,
छल,कपट भरपूर है ।
दोस्ती को रौद कर,
तेरी दुश्मनी मशहूर है ।।
हमें नाज है खुद के वफा पर,
शक तो तेरी बातों पे है।
कैसे करें विस्वास तुझपे,
गद्दारी तेरी मशहूर है ।।
ना बात का कीमत तुझे,
ना सम्मान खुद जुबां की है।
शर्म से भी झुकता नहीं,
नजरें तेरी मगरुर है ।।
वर्तमान सर है खड़ा,
भूत भी मशहूर है ।
अपने घिनौने रक्त से,
जननी तेरी मजबूर है ।।
एक बार क्या कई बार तुझको,
माफी मिला भगवान से ।
पर तेरी गुनाहों की सजा,
तो मिलना अब जरुर है ।।
मशहूर तेरी क्रूरता,
मशहूर तेरा द्वेष है ।
मशहूर गंदी है नजर,
मशहूर तेरा वेष है ।।
तेरा बदलता रंग भी,
कुछ कहने का तेरा ढंग भी,।
कुल मिलाकर सुन ले तू,
तेरी हैवानियत मशहूर है।।
✍️ ऋषि तिवारी "ज्योति"
चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)