बस तेरी अभिलाषा!

 

नीरजा बसंती

मैं तेरे नैनो की भाषा 

 तू मेरी परिभाषा,

और न कुछ चाहूं जीवन मे

बस तेरी अभिलाषा!


अपने ही गुलशन के हांथों

छला गया पतझड़ हूँ,

नागफनी के झुरमुठ में

मैं फँसा हुआ मधुकर हूँ!

पुष्प -पुंज की चाह नही

बेशक कंटक ही देना,

बस अपने मन के उपवन से

तुम बिसरा मत देना!

मरुस्थल की रेत जैसे

ऊष्मा में तपता है,

जैसे प्रेम- पतंगा

दीपक संग जलता है!

उम्मीदों के बोझ के तले

सिमट गया जीवन जो

मजबूरी के झंझावत में

छला गया बचपन जो!

शुष्क पड़ी जीवन सरिता की

तुम हो शीतल निरझर आशा

और न कुछ चाहूँ जीवन में

बस तेरी अभिलाषा!

मैं तेरे नैनो.....

तू मेरी परिभाषा...


नीरजा बसंती,

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री 

व स्वतन्त्र लेखिका, 

शिक्षिका व स्तम्भकार 

गोरखपुर-उत्तर प्रदेश

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