ग़ज़ल............

 



सुबह-दोपहर-शाम है,

पल-पल काम तमाम है।


मैं शायर हूँ मेरा तो,

लिखना ही बस काम है।


सबकी खातिर दुनिया है,

मेरा तो बस राम है।


लहू छलकता आँखों से ,

दुनिया कहती जाम है।


स्वर्ग सरीखा मेरा घर,

लगता चारों धाम है।


मेरा कुछ भी खास नहीं,

मेरा सब कुछ आम है।


छोडो ' गुलशन' की बातें,

वह तो अब बदनाम है।


..डॉ. अशोक 'गुलशन'

उत्तरी क़ानूनगोपुरा

बहराइच ( उत्तर प्रदेश)

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