डॉ पंकजवासिनी
कोरोना काल
कितना विकराल
मचा बवाल
देखो इससे
नहीं है कोई बचा
कहें किससे
विनती करूंँ
रहो घर पर ही
पईयाँ पड़ू
है सब ओर
वैश्विक महामारी
कमर तोड़
मास्क जरूरी
है दो गज की दूरी
बड़ी जरूरी
कारोबार है
कब से ठप्प पड़ा
अंधकार है
डॉक्टर कैसे
भगवान भू पर
हैवान जैसे
गिरा इंसान
मचा लूट खसोट
सब हलकान
हे भगवान्
अब तो कृपा कर
रोक क्रंदन
है समदर्शी
नहीं किसी को छोड़ा
व्याधि बरसी
घर-घर में
मचा कोहराम है
नारी नर में
मरघट है
पटा पड़ा लाशों से
जमघट है
गंगा का वक्ष
तैरती लाशें भरीं
रोते हैं अक्ष
*डॉ पंकजवासिनी*
असिस्टेंट प्रोफेसर
भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय