यह मेरा ज़ज्बा है



राजेश कुमार सिन्हा

 मै साहिर हूँ (जादूगर)

शायरी का 

शायरी की साहिरी(जादूगरी) मेरे जिस्म में शामिल है 

मै सारिक हूँ (चोर)

दिलों का 

यह मेरा ज़ज्बा है 

मेरे दोस्त मुझे ज़ुगतबाज़(चालाक) कहते हैं 

पर हवाला मोहब्बत का देते हैं 

मै खुद को जलीस(साथी)

कहता हूँ 

पर कोई हवाला नहीं देता 

दिल और मै एक दुसरे से मुंतआरिफ़ हैं (परिचित)

और मै दिल का मुजाविर(मज़ार का सेवक) हूँ 

मै इससे खेलता नहीं 

बस इससे मुखातिब रहता हूँ 

यह उसमे ही खुश रहता है 

हाँ इसकी मुखालिफत(विरोध) मुझे पसंद नहीं 

यह तो शीशे की मानिंद साफ़ होता है  

इसकी मुखालिफत क्यों ?

इसके ज़लवों के चर्चे तो आम होते हैं 

कोई बज़्म-ए-मय में इसको सुनता है 

कोई दिल की धडकनों में महसूसता है 

खुदपरस्ती(स्वार्थ) इसे पसंद नहीं 

 शिकवे/शिकायतों का दौर इसे पसंद नहीं 

बस इसे रास आती है 

सिर्फ मोहब्बत/सिर्फ मोहब्बत 

राजेश कुमार सिन्हा

मुंबई

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