'ऐनुल ' बरौलवी
प्यार के रास्ते नहीं मिलते
लोग दिल से गले नहीं मिलते
ज़हर बोती है ये सियासत क्यूँ
दिल के कमरे खुले नहीं मिलते
ज़ख़्म खाये हुये हैं लोग यहाँ
आजकल क़हक़हे नहीं मिलते
डर गये हैं यहाँ परिंदे भी
पेड़ पर घोंसले नहीं मिलते
हर मुसाफ़िर यहाँ प सहमा है
राह मेंं क़ाफ़िले नहीं मिलते
रंज़िशें हर किसी के दिल में है
प्यार के सिलसिले नहीं मिलते
जबसे मौसम रचा यहाँ साज़िश
गुल चमन में खिले नहीं मिलते
नफ़रतें ख़त्म कैसे 'ऐनुल' हो
दिल को अब हौसले नहीं मिलते
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)