स्मिता पांडेय
अंतर्मन में भावों ने जब, रहना न स्वीकार किया,
तब मैंने अपनी पीड़ा को, कविता का है नाम दिया ।
शब्दों का श्रृंगार किया तो, अर्थ बहुत मुस्काया था,
कलम उठाई लिखने को तो, हर मानव घबराया था,
रस छंदों से किया अलंकृत,तो कविता में प्राण पड़े,
जिसने मेरे दुख को समझा,उसने इसका गान किया ।
तुलसी ने मानस को रच कर, राम रसायन पाया था,
मीरा ने कान्हा की धुन में, गीत प्रेम का गाया था,
निर्झर सदृश गहन वेदना, गीतों से जब बह निकली,
तब दुख के बादल ने छंट कर, आशा का संचार किया ।
स्मिता पांडेय लखनऊ