नीलम द्विवेदी
कल के भोजन की तैयारी में,
इक माँ चला रही है चक्की,
कल बच्चों को रोटी मिल पाए,
वो जाता में गेहूँ पीस रही है,
दिन भर जो कामों में पिसती,
जब सब अपने बिस्तर में होते,
वो सूरज से पहले ही उठ जाती,
वो नाजुक बूढ़े हाथ बढ़ाती,
दो पाटों को वो साथ मिलाती,
फिर सारी शक्ति से उसे चलाती,
वो गेंहू में ममता घोल रही है,
अपने बच्चों के भोजन की,
फिक्र व्यवस्था करने की है,
यहाँ नहीं कोई आटा चक्की,
जो बिजली से चल सकती हो,
पर माँ की हिम्मत का तोड़ नहीं,
जाता चलाने से दुनिया कतराती,
वो उसके आगे से न डोल रही है,
बह रहा पसीना माथे से फिर भी,
देखो हिम्मत न उसकी टूट रही है,
हो रहे तीव्र दर्द से काँधे भारी,
पर वह माँ संतुष्टि से भरी हुई है,
कल के भोजन की तैयारी करने,
इक माँ जाता में गेहूँ पीस रही है,
उस माँ के आगे होना नतमस्तक,
जो ममता से घर को सींच रही है।
नीलम द्विवेदी
रायपुर ,छ्तीसगढ़।