माँ
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माँ जीवनदायिनी माँ ही विधाता है
माँ गिरजाघर माँ ही शिवाला है
प्रेम की प्याली में अमृत देती
कष्ट सहकर संतान सुख देती
ममता मूर्ति प्रेम की अविरल गंगा है
गुरु और पिता से माँ का ऊंचा स्थान
समग्र सृष्टि में माँ ही सबसे महान
सगुण और निर्गुण की अनुपम धारा है
कड़ी धूप की शीतल छाया है
वही दुर्गा वही काली उसी की माया है
माँ ही गुरु माँ ही प्रथम पाठशाला है
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मुझे तुमसे है कितने गिले
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कुछ पल ठहरो मेरे साथ न कहूँगी
मुझे है तुमसे कितने गिले
मुझे है तुमसे कितने गिले
केले के पत्ते पर मोती उछले
काली घटाये घुमड़ के बोले
भीगों मेरे संग एक बार न कहूँगी
मुझे है तुमसे कितने गिले
मुझे ---------------
हाथों में मेरे हाथ लो
बस प्यार से निहार लो
निवेदन कर लो मेरा स्वीकार न कहूँगी
मुझे तुमसे है कितने गिले
मुझे ----------======
बांहों में तेरी आ जाऊँ
भूल सब तुझमे समा जाऊँ
साँसों के जुड़ जाये बस तार न कहूँगी
मुझे तुमसे है कितने गिले
मुझे ----------------------
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चेहरा खुली किताब
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काश ऐसा होता चेहरे होते खुली किताब
कोई खाता नहीं धोखा मिलते उन्हें वहीं जवाब
ख़ुशबू क़ी तरह तुम जो महकते
गरीब के दर्द को दिल से समझते
विचारों. में खुलापन होता, होती जिंदगी गुलाब
चेहरे -------------------------------------
हैरान है लोग खुदा कोहराम देखकर
दोषों को न छोड़ता इंसान खुदगर्ज
त्राहि त्राहि चहुँ ओर तुझे भजता नहीं अविराम
चेहरे -------------------------------------
जिंदगी का हर लम्हा दर्ज इसमें
मर न जाये कहीं बस इस फ़िक्र में
सदाचार न अपनायेगा न होगा कभी विराम
काश --------------------------------------
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कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
उत्तरप्रदेश