मैं जहर के घूंट पीना जानती हूँ
जख्म अपना खुद ही सीना जानती हूँ !!!!
है परख मुझको भी हर इंसान की
छांट लूंगी पत्थरों से नगीना, जानती हूँ !!!!
बैठे हैं जो दौलतों के ढेर पर
किसका है उसमें पसीना जानती हूँ !!!!
ओढ कर बैठे शराफत का लिबास
किसने,किसका हक है छीना जानती हूँ !!!!
खींच कर मुर्दों के दामन से कफन
हो गया है आदमी कितना कमीना जानती हूँ !!!!
कई सितारे टूट करके गिर गए
है बड़ा कातिल महीना जानती हूँ !!!!
गर यही हालात जो कायम रहे
डूबेगा इक दिन शफीना जानती हूँ !!!!
रश्मि मिश्रा 'रश्मि'
भोपाल (मध्यप्रदेश)
15/5/2021