फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली



डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'

घर बदला माहौल है बदला

पर व्यक्ति संसार है बदला

बदल गये रिश्ते नाते सब

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


खान-पान, संग-साथ भी बदला

दोस्त-यार, घर-बार भी बदला

बदल गया व्यवहार सभी का

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


बहन-भाई का प्यार भी बदला

धन की चाह सभी को बदला

बदला रीति-रिवाज सभी का

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


बच्चों का संस्कार है बदला

पहनावा, चाल-चलन भी बदला

बदल गयी सबकी अब बातें

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


बच्चों का स्वभाव है बदला

बहू-बेटी का ध्यान है बदला

बदल गया सब वो अपनापन

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


शिक्षक बदले शिक्षा बदली

अब पूरा परिधान है बदला

बदल गये पुस्तक, विद्यालय

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


पानी बदला हवा भी बदला

सूरज, चाँद, सितारें बदले

बदल गये दिन-रैन सभी के

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


मौसम बदला, नदियां बदली

बादल का रंग-राग भी बदला 

बदल गयी भाषा-परिभाषा

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


कविता बदली भाव भी बदला

भाषा का सब ज्ञान है बदला

बदल गयी व्याकरण की शैली

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


रीति-रिवाज सभी के बदले

जीवन की परिभाषा बदली

बदल गयी अब दुनियादारी

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


हाल भी बदला हालात भी बदला

रहन-सहन, ठाट-बाट भी बदला

बदल गयी बचपन की शरारत

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


नियम बदले, न्याय भी बदला

आदर-भाव, सम्मान भी बदला

बदला चित्र-चरित्र सभी का

फिर भी माँ बिल्कुल नहीं बदली ।


*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍️

    मुम्बई

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