नाम : - अभिलाषा विनय
पद:- सहायक अध्यापिका
विद्यालय:-उ०प्रा०वि०
वाजिदपुर
ब्लॉक:- बिसरख, नोयडा
जनपद:-गौतम बुद्ध नगर
जन्म स्थान - लखनऊ
शिक्षा - एम. ए., बी. एड., एल. एल. बी., लखनऊ विश्व विद्यालय।
बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश में कार्यरत
-------------------------
लेखन विधा:- गीत, कविता, गज़ल, कहानियाँ
प्रकाशित:- गीत हुए सिन्दूरी, मातृभूमि, काव्य त्रिपथगा, काव्य रसधारा आदि साझा संकलन
प्रकाशनाधीन:-मुट्ठी के सीत
कई पत्रिकाओं और अखबार में लेख, गीत व कविताएँ प्रकाशित।
शैक्षिक सम्मान:-
आदरणीय जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर द्वारा सम्मानित।
साहित्यिक सम्मान:-
गीत विधा पर मातृभूमि सम्मान, गीत रत्न सम्मान, विद्या-वाचस्पति सम्मान, सशक्त महिला सम्मान।
वाग्देवी सम्मान, गीत श्री सम्मान,इंद्रप्रस्थ सम्मान, भजन मंजरी, गीत साम्राज्ञी व कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
"नन्हें कदम ऊँची उड़ान" (रचनात्मक व साहित्यिक संस्था):- संस्थापिका/अध्यक्ष
फ़ोन नम्बर:- 9310823783
🏵️पीर कितनी🏵️
मिले न शब्द नापे जो हृदय में पीर है कितनी।
रहे वो सालता भीतर, बिना सीमा गढ़े अपनी।।
बहे आँसू मगर वो भी अधूरी बात कहते हैं।
हृदय में टीसती अविरल घनी बरसात सहते हैं।
सदा ही खार सी चुभती अबोली पीर है जितनी।
मिले न शब्द नापे जो हृदय में पीर है कितनी।१।
जले मिलते रुपहले पल, लुटी सपनों की छाया है।
पिघलती वेदना ने हँस, नया हर स्वर रुलाया है।
भरी पलकें मिली भीगी सुबह से शाम के जितनी।
मिले न शब्द नापे जो हृदय में पीर है कितनी।२।
घटा सावन की हर सूखी, दुपहरी ने रचे घेरे।
खिले न एक भी कोंपल, समय के थम गये फेरे।
रहे बहती न घटती है, दुखित नद धार की जपनी।
मिले न शब्द नापे जो हृदय में पीर है कितनी।३।
हुए मकरंद सुर बासी, बुझे कलरव सुहाने हैं।
कभी अपने से लगते थे, वो दर्पण अब पुराने हैं।
चले चाकी है सुधियों की, गुजारे पल बने मथनी।
मिले न शब्द नापे जो हृदय में पीर है कितनी।४।
✍️अभिलाषा विनय