आकांक्षा सिंह
नाम से मिटटी तक का सफर ऐसा होता है आज पहली बार जाना
सबकी जिम्मेदारी संभालता हुआ वो आदमी खुद के शरीर की जिम्मेदारी चार कंधो पे दे गया
सबको ठाठ में रखता वो आदमी टाट पे लेटे चला गया
बिगहो का मालिक आज जमीं पे रखे बांस के चंद टुकड़े पे लेट के चला गया
परिवार को धागे में पिरोता आदमी ,बांध(कुस की रस्सी ) से बंध के चला गया
फूलो की छाँव देता वो आदमी खुद के ऊपर, फूल की छाव लिए चला गया
निर्मम सा ये दृश्य देख के रोंगटे खड़े हो गये जब घर का मुखिया यु सफ़ेद कपडे में लिपट के चला गया
- आकांक्षा सिंह |
वाराणसी