श्रीकांत यादव
माँ ईश्वर की एक किरदार है,
माँ जीवन जंग की सरदार है |
माँ जीवन नैया की पतवार है,
माँ एक संकटरोधी दीवार है ||
माँ का ममत्त्व असरदार है,
माँ खिले चिलमन में बहार है |
माँ घर में बसी एक संसार है,
माँ अपने बच्चों की संस्कार है ||
माँ पति और बच्चों की प्यार है,
माँ दिल के आगे लाचार है |
माँ होना ही एक सदाचार है,
माँ सचमुच में सब त्यौहार है ||
माँ पर घर भर का अघिकार है,
माँ प्रकृति की अमूल्य उपहार है |
माँ दिल की बडी उदार है,
माँ प्यार की हरपल देनदार है ||
(माँ और भी क्या है )
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माँ में बच्चों की लाचारी है,
माँ में पिता की जबाबदारी है |
माँ ही हर दुखों पर भारी है,
माँ घर के कुशलता की आभारी है||
माँ का अर्थ तीमारदारी है,
माँ करुणा ममता की पिटारी है|
माँ का दूसरा नाम बिचारी है,
माँ सुखों की चहार दीवारी है ||
माँ हर हुक्म की तावेदारी है,
माँ सुनती हो की उपाधिधारी है |
माँ को घर संवारने की जिम्मेदारी है,
माँ पति बच्चों के जूठन की अधिकारी है||
माँ में बुराई ढकने की बीमारी है,
माँ पति बच्चों के अवगुणों से हारी है |
माँ निकले आंसुओं से भी तारी है,
माँ बच्चों से प्यार मांगती दुखियारी है ||
(माँ की किस्मत क्या है )
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माँ कुछ बहुत अधिक नहीं,
सक्षम हो तो सबकी दावेदारी है।
माँ में बुढ़ापे की हुई लाचारी तो,
बहुओं के लिए महामारी है।।
यदि माँ के बच्चे छोटे हों,
तो उसकी हसरतें जवान हैं।
बच्चों के परिवारदार होते ही,
माँ के लिए बस भगवान हैं।।
माँ धूरी बनकर घिसती है,
दो पाटों के बीच पिसती है।
बच्चों के बंटवारे होते ही माँ,
घर घर मारी फिरती है।।
माँ तब उलाहना बनती है,
जब उसके बच्चों में ठनती है।
बहुओं की तावेदारी होते ही,
माँ उन सबके ताने सुनती है।।
दावेदारी से लाचारी तक का,
जीवन सफर माँ की पूर्णता है।
उसके जीवन का सूर्य केवल पति,
संतान बुढापे में शून्यता हैं।।
आर्तनाद माँ के दिल से न निकले,
बच्चों! सुख चैतन्यता का दान दो।
सृष्टि की अनुपम जननी को,
निर्भय करो अभयदान दो।।
(माँ महादेवी यादव को समर्पित)
श्रीकांत यादव।
(प्रवक्ता हिंदी)
आर सी-325, दीपक विहार
खोड़ा, गाजियाबाद
उ०प्र०