श्री कमलेश झा
मन मे बस एक बैचैनी तलाश है कुछ अनजाने ख्वाव।
हसरत मन की हिलोरे ले रहे ढूंढ़ रहे कुछ नई ख्वाव।।
चाहत की सीमा अपरिमित उसको है बांधने का ख्वाव।
चाहत के बस इसी चाह में तलाश है कुछ अच्छे ख्वाव।।
गगन नील में उड़ने का बांधा है एक बड़ा ख्वाव।
ऊँचाई का भान हमें है फिर भी पूरा करना ख्वाव।।
तलाश अब जन मानुष में सद्भाव का जगे जो ख्वाव।
आपसी भाईचारे से सशक्त समाज का गढ़े जो ख्वाव।।
तलाश पूरा हो इस समाज का समाजिकता का भरकर ख्वाव।
एक डोर में बंधकर ही समाजिकता का भरे जो ख्वाव।।
तलाश अब फिर से ही युग पुरुष के आने का ख्वाव।
देश और समाज का पूर्ण करें जो अधूरे ख्वाव।।
तलाश अब अच्छी सोचों का जो पूरा करे विकास का ख्वाव।
जिनके नेक विचारों से भारत के प्रगति का हो पूरा ख्वाव।।
तलाश खत्म कब किसकी होती सबके अंदर जो भरें हैं ख्वाव।
कभी सच्ची तो कभी झूठी बन मानव में जो भरते ख्वाव।।
तलाश पूर्ण हो अब मानुष का मत देखें अटपटे ख्वाव।
संतोष पिटारा हाथ लिए बस पूरा करें जीवन के ख्वाव।।
श्री कमलेश झा
राजधानी दिल्ली