जीवन -कर्मभूमि
यह जीवन कर्मभूमि है,यहाँ सत्कर्म ही पूजा,
जहाँ पर सत्य पलता हो , वहां 'गीता' क्या है?
ह्रदय क़ि भावनाओं को प्यार के शब्दों में ढालो,
जो मन क़ि पीर न बांटे, वो 'कविता' क्या है?
खुली लहरों की कश्ती पर ,जो सागर पार कर जाये,
किनारे पर ही सिर धुनतीहो वो 'सरिता' क्या है?
ये कुंडल, हर केयुरक,,ये रुनझुन पाँव के नुपूर,
पर मन का शृंगार ही सूना हो,तो'वनिता' क्या है?
गुणों के धर्म में बिम्बित ,जहाँ शोभित हों आभूषण,
मगर लज्जा सिसकती हो, तो 'अस्मिता' क्या है?
उपेक्षित हो जहाँ बचपन,और वात्सल्य रोता हो,
ह्रदय का स्नेह सूखा हो,तो 'ममता' क्या है?
लुटाये स्वर्ण सी किरणें,प्रकाशित हो जगत सारा,
मिटे न मन अँधियारा, तो फिर 'सविता' क्या है?
यहां राम हैं तो रहीम भी
कण कण ये भारत भूमि का करता हृदय से प्रार्थना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
यहां राम हैं तो रहीम भी
श्रीकृष्ण हैं तो करीम भी
फिर क्यो अमन के नाम पर फैली हुई दुर्भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
बहुत हो चुका अब न कोई
युद्ध राम के नाम पर
अब न कोई द्वद्ध रहेगा
धर्म ,,भूमि के नाम पर
हम सब केवल भारत के,न डिगे एकता-भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
बस लोकतंत्र विजयी रहे
ना हो बिखडित एकता
गौरव रहे अब न्याय का,
सम्मान संविधान का
कोई रहे या ना रहे
बस देश यह जिंदा रहे
ना हो कभी फिर भारती मां की यहां अवमानना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
जहां धर्म जाति व न्याय के
अद्भुत समन्वय की प्रथा
बंधुत्व की यह भावना
सस्वर विजित होगी सदा
होगी सदा अपराजिता,सुख शान्ति की शुभ भावना
भगवान मेरे देश में जीते सदा सद्भावना
मैं धरती मां,बोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं
अनगिन घावों की पीडा में
मन के आंसू घोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं
हरियाली की चादर जर्जर,
तपती गर्म हवाओं का डर
पथरीले पथ पर डगमग पग,
बिना त्राण के डोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं
तन का लहू पिलाकर पाला
सुख स्वप्नों में देखा भाला
सुखद छांव दी तरु-विटपों की
सुरभित कर जीवन का प्याला
पर अपने जाये बेटों ने
श्वेताभा से तन रंग डाला
रंगहीन आंचल संभालती
यात्रा पथ पर घूम रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं
पद्मा मिश्रा जमशेदपुर झारखंड