राह तके ये नैन

आशीष भारती

घर आंगन की फूल बगिया

तुम बिन सब मुरझाए रहते हैं

पिया इस दिल को तुम बिन नहीं चैन

कहां चले गये चले आओ इस दिल में

तुम्हारे आने को राह तके ये नैन

एक नज़र में तुम्हें देख अपना बनाया

तुम्हारी अदाओं पे मेरा दिल आया

हर धड़कन की सांसें में नाम तेरा छाया

बन गया इस दिल में तुम्हारा बसेरा रैन

तुम बिन नहीं मिलता इस दिल को चैन

पिया विरह की बेला में मन मिलने को तरसे 

नयी उमंगे नयी तरंगें मन में उठती नव तरंगें

तुझे पाने की हसरत उठती इस दिल में

तेरे घर वापिस आने की राह तके ये नैन

सुरमयी आंखें सिंदूरी माथा

हर कोई गाये अमर प्रेम की गाथा

खन-खन चूड़ी छम-छम पायल 

होंठों पर तिल और बालों की लटायें 

तेरे सौंदर्य रूप की राह तके ये नैन

नहीं मिलता इस दिल को तुम बिन चैन।।


*आशीष भारती*

लेखक/ कवि/समीक्षक

(प्रशासनिक सहायक: फार्मेसी कॉलेज बडूली)

सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

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