अंतर का भेद टूट जाए

 

मनु प्रताप सिंह 

   बने प्रेम-मन से , सुंदर जहान।

एक शरीर , एक ही युक्त पहचान।

फिर कैसे हो गये, भिन्न इंसान।

हमें बाँटने वाले महाज्ञान,

के घर लूट जाए।

अंतर का भेद टूट जाए।।


वंचितों का क्रोध , फूटेगा रोष में।

सभ्य लुटेरों , आओ अब होश में।

दो दिन,ज़रा बिताओ खानाबदोश में।

मुकुटधारी धन - पूँजी के कोश में,

हाय!सब कुछ लूट जाए।

अंतर का भेद टूट जाए।।


●मनु प्रताप सिंह 

चींचडौली,खेतड़ी

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