नवरंग
1
बिन तरु सर्वदेश मरु दे सबको जीवन दान
शोभा वर्धक निकुंज दे वन उपवन वरदान
खग शुभ्र नीड़ निवास फल खाए सकल जहान
पूजें ब्रह्म सम इन्हें करें प्राण वायु प्रदान
जन जन में सब प्रचार करें एक पेड़ जरुर लगाओ
पानी और सुरक्षा देकर उसको विराट बनाओ
2
तप्ति धरा गात दाह जब आए माह अवदाघ
अनावृष्टि चहुं ओर पिपासार्त झख खग बाघ
भर लाते जल मेघ जब आए ऋतु चतुर्मास
भीग जाए कण - कण कभी वर्षण धारासार
पुष्पित नवरंग लगा सुसज्जित आता मौसमे बहार
कान्हा सा पीतांबर पहन झुलाता गले का हार
मां
जग में सुन्दरतम शब्द ढूंढने पर पाया मां
कभी गलती कभी शाबाशी
सब में तूने थपथपाया मां
काज के अतिरेक में भी
तूने कहां जगाया मां
अपनी कोख के आवरण में भी
जीने का पाठ पढ़ाया मां
सर्द ठिठुरन तपन मेंह में
अपने आंचल में छुपाया मां
आधि - व्याधि हर्ष रोग शोक
सब में तूने सहलाया मां
राम कृष्ण शिव कथा सुना
वीर अभिमन्यु सा बनाया मां
हार में भी न हारने का पाठ
तूने खूब सिखाया मां
अज्ञान अंधेरों में भरमते देख
दीपक सा मुझे जलाया मां
मेरी जीवन हरियाली हेतु
खुद को खूब सताया मां
त्रिलोक नवग्रह समस्त सृष्टि में
तुम सा न कोई पाया मां
बलवान सिंह कुंडू 'सावी '
रा व मा वि जाखौली