कलम का तीर


कीर्ति चौरसिया

अपने मन के भावों को 

जब हम पन्नों पर लिखते हैं,

लोग पढ़ कर मुस्कुराते हैं

और किताबों पर छपते हैं !!!


दिल की हर तमन्ना को 

सिर्फ कलम समझती है,

कितने दर्द पाले हैं

कितनी हसरत संभाली है !!


किसी की चीख को सुनकर

कलेजा भर गया था जब,

चलाना सीखा था कलम

जो रुकती नहीं है अब !!!


जमाना क्या करेगा सितम

जो मैंने ही ये कर डाला ,

अपने सुर्ख ख्वाबों को 

स्याही में मिला डाला !!!


हाथ लिखते नहीं 

दर्द की नुमाइश से डरते हैं,

ये कलम है ,जो मचल जाती है

कागज को सजाने में !!!


कलम हमारी भी

तेजी से चलने लगी है अब,

बनकर तीर कलम को

निशाना साधते हैं अब !!!!

      कीर्ति चौरसिया

    जबलपुर ( मध्य प्रदेश)

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