ललिर तुमसे हो गया किस हाल में
बाँध लूँ तुमको कहो रूमाल में
इश्क़ में तेरे तड़पता दिल मेरा
जैसे मछली है तड़पती जाल में
आशिक़ों पर बिजलियाँ तू मत गिरा
आज भी कैसी अदा है चाल में
है ज़माना प्यार का दुश्मन यहाँ
भाग चलते हैं अभी बंगाल में
क्यूँ तुम्हारे ख़त हमें मिलते नहीं
डाकख़ाना आज है हड़ताल में
फोन मेरा तुम उठाती हो नहीं
हमको लगता कुछ है काला दाल में
चाँद आता है नहीं छत पर मेरे
चैन दिल को है नहीं बेहाल में
प्यार के रुखसार पर पहरा लगा
आज 'ऐनुल' हैं पड़े जंजाल में
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)