डॉ पंकजवासिनी
चाँद तो होता ही है बड़ा ही खूबसूरत!
पर मौत के आँगन में किरचों सा चुभता है!!
हवा क्यों न हो मृदुल बासंती बयार भरी!
पर विरही के मन को तो बर्छी सी चुभती है!!
भँवरों का डोलना औ' कलियों का खिल जाना
देखकर भी आँखें शून्य में गड़ी रहती हैं!!
राग भरे सुखद पलों की मधुर मदिर स्मृतियाँ
नयन सतत् भिगोती हैं हिया को हहराती हैं!!
सुखों की खेती - गृहस्थी को देख उजड़ते
छाती टूक टूक हो प्राण मुँह को आते हैं!!
*डॉ पंकजवासिनी*
*पटना, बिहार*