शरद कुमार पाठक
माँ की ममता कब कहती
आँखों से ओझल हो जाओ
स्नेह पिता का कब कहता
कोई आँक मेरा ये गिर जाये
उर में बहती ममता की धारा
आँखों में बसता प्यार
मां की ममता कब कहती
आँखों से ओझल हो जाओ
वट वृक्ष तुल्य सम पिता बराबर
मां करुणा का सार
जीवन पलता माँ के आँचल में
पिता देता शीतल छांव
आंच न आने देता सर पे
चाहे खुद मुसीबतों का झेले पहाड़
माँ की ममता कब कहती
आँखों से ओझल हो जाओ
स्नेह पिता का कब कहता
कोई आँक मेरा ये गिर जाये
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक------(हरदोई)