अखिलेश्वर मिश्र
जे भी जनम लेले बा ओकर,
एक दिन गइल तय बा।
तबो ना देखीं मृत्यु से,
हमनीं में केतना भय बा।।
हर व्यक्ति अपना जीवन में,
रोजे देखे सपना।
ना चाहेला छोड़ के जाईं,
घर-परिवार के अपना।।
चाहेला दायित्व निभाईं,
घरभर के दीं प्यार।
माई-बाप के सेवा करीं,
बेटा-बेटी होखे होशियार।।
सुंदर सा बंगला हो आपन,
भरल पुरल परिवार।
आमदनी के स्रोत बहुत हो,
बिकसित हो ब्यापार।।
इहे मोह माया जीवन के,
इहे कहाला तृष्णा।
एकरा से छुटकारा खातिर,
जाईं शरण में कृष्णा।।
जे दिन मोह भंग हो जाई,
निर्विकार हो जाई काया।
जीवन-मरण के चिंता हsटी,
रही ना केहू आपन पराया।।
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