ममता रानी सिन्हा
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखूँ।
ये विशाल विस्तृत वसुन्धरा लिखूँ,
या असीमित अकोटी अम्बर लिखूँ,
प्रारब्ध को बांटता तीनो लोक लिखुँ,
या जग के अनंत शिव दिगम्बर लिखुँ,
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखूँ।
क्या तुलसी का रामचरित लिखुँ,
या स्वयं श्रीराम का जीवनवृत लिखुँ,
क्या सिया का शील स्नेह धैर्य वर्णन लिखुँ,
या रामायण की हरेक गाथा जीवन लिखुँ,
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखूँ।
क्या कृष्ण की गईया ग्वालन लिखुँ,
या राधा वृंदावन मनभावन लिखुँ,
क्या माधव बाल क्रीड़ा मित्र ग्वार लिखुँ,
या रणभुमि में उद्घोषित गितासार लिखुँ,
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखूँ।
क्या प्रत्येक हृदय की अभिलाषा लिखुँ,
या आदि से अंत तक कि परिभाषा लिखुँ,
क्या तैतीस कोटि देव और वेद पुराण लिखुँ,
या जो देखा पढ़ा जाना वो महिमा महान लिखुँ,
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखुँ।
बहुत सोंचा बहुत जांचा घोर अध्ययन किया,
क्या लिखुँ जो सर्वस्व हो इसी का मनन किया,
सोंचा कैसे अनन्त प्रारब्ध को शब्दों में बांध लूँ,
और पूर्ण सर्वस्व को अपनी लेखनी में साध लूँ,
और मैं सोचती हूँ क्या लिखुँ,
सोंचा आज वो सर्वस्व लिखूं,
जिसमें केवल मात्र मैं दिखूं,
परन्तु सोचती हूँ क्या लिखुँ।
और लो आज मैंने सर्वस्व लिख हीं लिया,
खुश हूँ कि मैंने असंभव को संभव किया,
लिखा जिसमें केवल मात्र मैं हीं दिखती हूँ,
लिखा वैसी ही लगती हुँ और वैसी जीती हूँ,
पर जरा सोंचो मैंने क्या लिखा,
जिसमें सर्वस्व मेरा मैं दिखा,
तो मैंने तो बस "माँ" लिखा,
हां मैंने तो बस "माँ" लिखा।
🙏🏻🙏🏻
ममता रानी सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखंड)
(स्वरचित मौलिक रचना)