सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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अंगूर सी खुश्बू आती है तेरी सांसों में,
झट से समा भी जाओ आ कर मेरी बाँहों में।
यूँ आम रस रिसने लगता है तेरे बोली में,
है खूब रौनक आम्र के सघने से बागों में।
है जाम के प्याले ये तेरे पंकज से ओष्ठ,
छाई अनारों सी लाली तेरे इन होठों में।
महके महक तेरे तन में सरसों के फूलों की,
रतनार सी कोमलता नाजुक तेरे अंगों में।
तुम यूँ गुलाबों के पुष्पो सी खिलती रहती हो,
अमरूद सा मीठापन तेरे बोले लफ़्ज़ों में।
हो नीम सी कड़वी भी यूँ मनसीरत लगती हो,
फिर भी बिछा दूँ मैं पलके भी तेरी राहों में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)