स्नेहलता पाण्डेय"स्नेहिल"
दिल में है इक सूनापन, आँखों में कुछ नमीं सी है।
तेर बिना ओ माँ! जिंदगी में बहुत कमीं सी है।
दिखे बहुत लोग ख़ूबसूरत,पर कोई तुम सा न दिखा।
मिले बहुत ख्याल रखने वाले,पर तुम सा ना रखा।
तुम से बढ़कर हमदर्द मेरा इस जहाँ में कोई नहीं है।
तेरी आँचल से बढ़कर, ओ माँ! ज़न्नत कोई नहीं है।
तेरी बाग़ के थे फ़ूल हम,अब किसी और बाग़ के बगवां।
पर तेरी जैसी बात माँ , वो हर ख़ूबियाँ हम में है कहाँ।
ऐसा नहीं कि मेरी नई जिंदगी में,खुशियों की कमी है।
पर मेरे उस घर जैसी ख़ुशी , मुझे मिलती कहीं नहीं है।
लगता है मुझे माँ, तुम अभी कहीं से आ आओगी।
लोरियां गा,गा कर , मीठी नींद में मुझे सुलाओगी।
तेरी लोरियों के बिना माँ! नींद आती मुझे नहीं है।
कोई भी परी अब सपनों में,लुभाती मुझे नहीं है।
ममता की ठंडी छाँव तेरी,अब भी बिसरी मुझे नहीं है,
यादों के गुलशन में मेरी मां! महकती,रहती हर घड़ी है।
स्नेहलता पाण्डेय "स्नेहिल"✍️✍️
नई दिल्ली