भ्रष्टाचार



साधना कृष्ण

भ्रष्ट हुए जननायक

          भ्रष्ट किया लोकतंत्र ।

लिजलिजी हो गयीं

          नीतियाँ आपाद मस्तक ।

भारती के मान की 

          और देश के सम्मान की

न रही उनको फिकर

          बस प्रधान स्वार्थ तंत्र ।

जो है लिख लोढा

          वो नचाते विद्व जन 

बच गया देश मे 

          अब केवल भीड़ तंत्र ।

अस्त व्यस्त जिंदगी

          पस्त हुए सारे तंत्र ।

आधुनिक युग में भी

          हावी है योग तंत्र ।

ज्योतिष जनहुए प्रसन्न

          वैग्यानिक है हतप्रभ 

            ््


भला ये कैसा है षडयंत्र ।ू

           भारती भी देखती हतप्रभ

        हर तरफ छा गया

          अब क्यो गिर गिटी तंत्र।

नाद है ,निनाद है

फिर भी असरहीन संवाद है

          बात -बात पर चढा

केवल केवल झूठ तंंत्र 

       जय हिंद ! जय भारत !

जय -जय हे लोकतंत्र

जय जय हे लोक तंत्र ।


     

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