कली समी्र द्विवेदी नितान्त की रचनाएं

 


गजल

जहन मे याद तुम्हारी भी है ।।

थोडी दुनिया दारी भी है।।


करता हूँ सम्मान सभी का,

औ दिल मे खुद्दारी भी है.।।


बच्चों की मुस्कान समझ लो,

ये ईश्वर की फुलवारी भी है ..


यूँ लगता है मिलकर तुमसे

परिचय भी है यारी भी है


इश्क के सौदे कैश न होते

इसमे बहुत उधारी भी है


इक दूजे के खातिर हैं हम

क्या ये राय तुम्हारी भी है 

ग़ज़ल

 सुख की चाह अगर है तो फिर तपना पडता है..।।

हर मौसम की हर सूरत को सहना पडता है..।।


ख्वाबों को बुनना फिर उनको पूरा करने को..

कभी कभी तो खुद से खुद ही लडना पडता है..।।


सब कुछ आसाँ हो जाता है ऐसा कब मुमकिन...

अपने हक की खातिर अक्सर लडना पडता है..।।


अपने हैं लेकिन कब बढकर दर्द समझते हैं...

अपने सुख दुःख खुद ही चल कर कहना पडता है..।।


कुछ तो लोकाचार और कुछ मान भी रखने को...

वेमन से ही साथ किसी के चलना पडता है..।।


ग़ज़ल....


देकर जरा उधारी देखो।

फिर उसकी लाचारी देखो.।।


मत हथियार निकालो, पहले

दुश्मन की तैयारी देखो.।।


फिर उपदेश मुझे तुम देना

पहले दुनियादारी देखो..।।


मुख पर बातें हैं मुख देखी

पीछे चलें कटारी देखो..।।


तिरस्कार मिलता है अक्सर

वृद्धों की लाचारी देखो..।।


तुम नितान्त अपने बलबूते

पर अपनी दुश्वारी देखो..।।


समी्र द्विवेदी नितान्त

कन्नौज... उत्तर प्रदेश

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