काश !कभी यादों के जैसे,
बस थोड़े से पल फुरसत के,
इस बेबस मन को दे जाते!
मुझसे मिलने तुम आ जाते.....
हाथों को लेकर हाथों में.
मन से मन की सारी बातें,
मौन अधर जो कह न पाए,
नैन वो बातें सब कर जाते!
मुझसे मिलने तुम............
बिन रिश्ते नातो का बंधन,
मन से मन का ये अनुबंधन,
जीवन भर हम इसे निभाते,
काँधे पर मेरे सिर रखकर,
मन की पीड़ा तुम कह जाते!
मुझसे मिलने तुम..............
देख तुम्हारा रूप सलोना,
चाँद और तारे शरमाते,
हमभी अपने चाँदसे मिलकर,
अब की बार ये ईद मनाते!
मुझसे मिलने तुम...............
काश! कभी यादों................
बस थोड़े से पल.................
इस बेबस मन को................
मुझसे मिलने तुम................
नीरजा बसंती,
वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व
शिक्षिका,स्वतंत्र लेखिका
व स्तम्भकार,
रूस्तमपुर गोरखपुर-उत्तर प्रदेश