मनु प्रताप सिंह
अंगीकार कष्ट हैं,स्वीकार हैं,
घने अंधेरी कानन के।
धारादार असि से,आर-पार,,
गर्व कटेंगे दशानन के।।
कलुष अपहरण से,
शुद्ध के बहते नयन अश्रु।
राम के प्रतिशोध जैसे,
युद्ध को कहते रक्त चक्षु।।
सत्य-धर्म युद्ध में,
स्वर्ण लंका भी धूमिल हो गयी।
वनवास कष्ट औऱ घास की रोटी,
के आदर्श भी जगप्रसिद्ध हो गयी।
लिए सुख भोगने,
घुटने टेकने ही थे महज।
स्व-अर्पण ही तो था,
मात्र आमन्त्रण सहज।
हुए प्रयास हरसंभव राणा के,
स्वाभिमान को झुकाने को।
किन्तु वो अकड़न ही थी,
गरिमा को बचाने को।।
सुने जायेंगे ये,युगों तक,
गूँजेगे किस्से पावन के।
धारादार असि से,आर-पार,,
गर्व कटेंगे दशानन के।।
मनु प्रताप सिंह
चींचड़ौली(काव्यमित्र),खेतड़ी