सवि शर्मा
ये कैसी गाथा तुम गा रहे हो
पन्नों पे कितना सजा रहे हो
मेरे हिस्से में साल का सिर्फ़ एक दिन
बाक़ी दिन तुम क्यूँ भुला रहे हो
तकते नयन मेरे दो बोल मीठे सुनने को
व्यस्तता तुम्हारी बेवजह खिचे जा रहे हो
बुलाना जो चाहा पास अपने तुमको
वक्त ही नहीं है पास बतला रहे हो
करूँ मैं क्या तोहफ़े तेरी ख़ुशी के
दवाई ही जब मेरी भूले जा रहे हो
दास्ताँ मेरे प्यार की सिर्फ़ दुनियाँ की ख़ातिर
सूखी गीली कहानियाँ दोहरा रहे हो
कौन सी माँये रोती आश्रमों में
जाने किनको देवियाँ बता रहे हो
सवि शर्मा
देहरादून