ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
सदा जीवन का आधार है मां,
ममता का भंडार भी है माँ,
दयानिधि की मूरत होती माँ,
प्रेम की भी सूरत होती माँ।
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
मेरे हर कष्ट मेंदुःखी होती माँ,
खुशहाली से खुश होती है माँ,
कितनी भी गलती करता हूं मैं,
मुझे सदा ही माफ करती है माँ।
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
पुत्र को जगत में लाने के लिए,
कष्ट बारम्बार सहती है एक माँ,
पुत्र कितना बुरा व्यवहार करे,
पर सदा आशीष ही देती है माँ।
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
माँ ही आदि है माँ ही तो अंत है,
माँ से बड़ा जग में ना कोई संत है,
सदा जीवनज्ञान कराती हमको माँ,
निश्छल प्रेम ही सदा बरसाती माँ।
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
माँ का कर्ज कौन है चुका पाया,
राजा ,रंक या हो कितनी भी माया,
सारे कर्ज उद्धार करती है तू माँ,
ओम कहे सबसे महान होती है माँ।
त्याग तपस्या की खान होती माँ,
ईश का अनुपम विधान होती माँ।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी कानपुर नगर