मनहरण घनाक्षरी


सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

*******************

बागों में है कली खिली,

दुनिया की खुशी मिली।

अब न कोई है गिला,

जान में जान आई।।

हिय में बहार छाई,

तन लेता अंगड़ाई।

खुशियाँ हजार लाई,

चलती है पूर्वाई।।


काली घनघोर घटा,

बादलों की प्यारी छटा।

बदली बरसती है,

भू की प्यास बुझाई।।


अधरों से छूता रहूँ,

गरमी को सदा सहूँ।

गले से लिपट जाऊँ,

दूर होगी तन्हाई।।


मनसीरत कहता है,

दुख दर्द सहता है।

मन में है चैन नहीं,

नैनो में नीर लाई।।

******************

सुखविंद्र सिंह मनसीरत 

खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
सफेद दूब-
Image
आपका जन्म किस गण में हुआ है और आपके पास कौनसी शक्तियां मौजूद हैं
Image
भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के मनीषि बिमलेन्दु पाण्डेय जी के जन्मदिन के बहुते बधाई अउर शुभकामना
Image