गर्म हो रही धरती अपनी
कैसी लगी ये आग है
अकाल पड़ने से मृत्यु हो रही
खाने को न बचता अनाज है
कहीं सूखे की मार तो कहीं
दूषित हवा से इंसान बीमार है
नदियों का जल है सूख रहा
इंसान झूठी शान को लाचार है
काट रहे क्यों पेड़ों को
क्यों न मन में आता कभी विचार
कि इनसे ही शुद्ध वायु है होती
इनसे ही है जीवन का आधार
कौन बचाए धरा को होने से यूँ वीरान
मानव खुद ही बना हुआ इनके लिए शैतान
अगर अब भी न हम संभले तो
यह धरा होगी एक दिन श्मशान
पेड़-पौधे हमारी धरोहर हैं
इससे ही ऋतुओं की बहार
न करो मानव तुम इनका संहार
ये ईश्वर के अमूल्य उपहार हैं
लगाकर पेड़-पौधे को तुम
प्रकृति का श्रृंगार करो
वर्षा का आवाहन करके
इस जीवन का उद्धार करो ।।
डाॅ.अनीता शाही सिंह
प्रयागराज