देखते-देखते आदमी खो गया
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सादगी का शहर,अजनबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
भीड़ बढ़ती रही,राह चलती रही ।
ढूंढ़ती आसरा ,गल प्रबलती रही ।।
मैं खड़ा उस जगह,मतलबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
शब्द फूटे मिले,लाभ झून्ठे मिले ।
स्वप्न के दर्मियां ,आप रून्ठे मिले ।।
हौंसलों का शिखर ,कागजी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
मोह ममता ममीं,धुल गयी वह जमीं ।
मौन दिल बैठता,जम गईँ सब कमीं ।।
रीतियों का चलन ,लाजिमी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
रास्ते क्या?बुनें,वास्ते क्या?चुनें ।
नापते वादियाँ ,कांपते क्या?सुनें ।।
दोस्तों में "अनुज ",दिल्लगी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
!!अवसरमयी आपदा !!
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मन -मन्दिर में साज सजाया ।
क्या ? खोया,क्या ?हमने पाया ।।
बीता वर्ष , रहा अलबेला ।
राही चलता ,राह अकेला ।।
हर्षित कभी,कभी सकुचाया ।
क्या ?खोया,क्या ? हमने पाया ।।
मानवता अस्तित्त्व,अधर में ।
जीवन-दर्शन,कैद लहर में ।।
अवसरमयी आपदा पाया ।
क्या ? खोया,क्या ?हमने पाया ।।
ईश्वर शरण,मानसिक चिन्तन ।
अहम् छोड़ ,सहयोग समर्थन ।।
वार , विषाणु का घवराया ।
क्या ? खोया,क्या ?हमने पाया ।।
जटिल शब्द,जीवन का हिस्सा ।
संकट समय ,अतीत-ए किस्सा ।।
कोहरा छटत , रवि मुस्काया ।
क्या ? खोया,क्या ?हमने पाया ।।
जिद हट और,पतन से नाता ।
अफवाह!असमंजस अन्नदाता ।।
आयुर्वेद , स्वदेशी भाया ।
क्या ?खोया ,क्या ?हमने पाया।।
दूर धुंधता,उद्यमता सानी ।
सबसे आगे ,हिन्दुस्तानी ।।
छू नहीं पायी ,काली छाया ।
क्या ?खोया,क्या ?हमने पाया ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ,उत्तर प्रदेश।