इक ग़ज़ल कुछ यूं अर्ज करती हूं कि.....




अंजु दास गीतांजलि

उसकी नज़रों के मुताबिक़ मैं नज़र आऊं कैसे।

अपने दिल की बात उससे अब मैं बतलाऊं कैसे।


सारी दुनियां में वो ही इक मेरे दिल को भा गया

अब मैं अपने दिल को रोकूँ कैसे , समझाऊं कैसे।


जिसको आना था मेरी इस ज़िन्दगी में ,आ गया

राज़ उल्फ़त का ये सबसे अब मैं बतलाऊं कैसे।


ओढ़ कर नाक़ाब चेहरे पर रखूं मैं कब तलक

नाम उसका आइना भी लेता , झुठलाऊं कैसे।


उसके पहलू में जा के दिल को बड़ा मिलता सुकूँ

अंजु की वो है मुहब्बत , उसको बिसराऊं कैसे।


 , ग़ज़ल संग्रह - 02 से 

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अंजु दास गीतांजलि....✍️पूर्णियाँ ( बिहार )

की क़लम से ✍🏻🙏🌹🙏👈

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