किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"
कुछ कविताएं, 🌹
कालजयी होती हैं ।
जैसे मेरे मन के शिलालेख,
पर टंकित तुम्हारा मृदुल प्रेम ,❤
याद है !
एक दिन तुमने मुझसे कहा था?
तुमने तो मुझे कवि ह्रदय
दे दिया गुरु जी....।।।
आह !!!!
कवि हृदय 🥰
यूँ ही तो किसी में जन्म नहीं ले लेता।
काश !!
की तुम अपने मन के
बेहद अंतरंग कोने में
जन्म लेते मेरे प्रति ,
अपने नवीन वाल्मीकि अवतरण की भूमिका को महसूस कर पाये होते,
समझ पाते ! कि कवि हृदय
संवेदनशीलता के किसी
खास उपादान पर पहुँचकर ,
निश्चय ही
किसी खास मक़सद के लिए
प्रादुर्भूत होता है।
पर तुमने अतिशीघ्रतावश
अत्यन्त असंवेनशीलता का
परिचय देते हुये
उस नवजात शिशु को
जन्म लेते ही निर्ममता पूर्वक
वध के दोष का पाप ग्रहण किया...।
खैर।
कितनी खूबसूरत थी
वो कविता की चार पंक्तियां ,🙋♀😊
जिसे तुमने मेरे लिए अपनी सारी रात की नींद पर न्यौछावर कर लिखी थी....।।😘
और कहा था कविता लिखना आसान नहीं गुरूजी आज पता चला। 🤔
मातृत्व की भावना का
अहसास
जो पहली बार हुआ था तुम्हें,
उन पंक्तियों में
मेरे प्रति प्रेम और सम्मान की गरमाहट मैं आज भी महसूस करती हूँ।
उम्र और दोस्ती की गरिमा.... में
पकाया एक खूबसूरत रिश्ता.......🙏❤
जो दूर रहकर भी अटूट है।
पास है इतना ,
जितना की आँखों में अश्कों के मोती।
हृदय की कोटर में धड़कन,
जिस्म के पिंजर में साँसें ,
आँखों को हर बला से बचाती
उठती गिरती पलकें,
तुम मेरे सर्जक भी हो,
मेरी प्रेरणा भी,
मेरी गरिमा,
मेरे अभिमान,
मेरे पथप्रदर्शक,
मेरी ज्योति ,
मेरी कल्पना,
भाव, शब्द, अर्थ ,व्यंजना, लक्षणा, अभिधा ,उद्गार,
वेद, श्लोक,और ऋचायें भीं,
हे कविश्वर,🙏
मेरी कवितावली के
हर अक्षर, शब्द, वाक्य ,
पद्य ,बन्ध, छन्द,गीत, गजल ,
सब मुझमें तुझसे हैं और तुम मुझमें..🌹❤
तुम सुन रहे हो ना.....मेरे नीलवर्णी शिष्य, 🌹🌹
किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा"
नोयडा