!! पहाड़ा पढ़ाते मुझे जा रहे है !!
गिरिराज पांडे
ओ अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं
पहाड़ा पढ़ाते चले जा रहे हैं
नजर है गाड़ी मेरी राहों पर उनकी
दिखाई नहीं अब भी वे दे रहे हैं
दूरी बना करके मुझसे हमेशा
बिरह में ही मुझको तड़पा रहे हैं
चले या नहीं कुछ पता ही नहीं है
पर आसा लगा कर जिए जा रहे हैं
कब तक मैं देखूं तुम्हारी यह राहे
आंखों से आंसू गिरे जा रहे हैं
पथरीली सी हो गई मेरी आंखें
भावो में डूबे ही अब जा रहे हैं
संभलू इस जीवन में कैसे मैं अब तो
धक्का वो मुझको दिए जा रहे है
आंखों से ओझल न होऊगा तुम्हारे
कसम वो हमेशा ही खा जा रहे है
बनकर सहारा रहूंगा तुम्हारा
मगर पास मेरे ना ओ आ रहे है
कह कर मुकर जाते हैं वह हमेशा
धोखे पर धोखा दिए जा रहे हैं
गिरिराज पांडे
वीर मऊ
प्रतापगढ़