कीर्ति चौरसिया
ना करो ज्यादा उम्मीदें,
ना सजाओ बड़ा सपना ,
आए हो दुनिया के मेले में ,
चार दिन है तुम्हें रुकना !!!
है लोभ, लालच, विलासिता
का बाज़ार सुंदर सजा हुआ ,
स्वार्थ, कटुता ,और
मैं , मैं का शोर बड़ा मचा हुआ !!!
लेकर चार अपनों को
तू घूम दुनिया के मेले में,
दे, देकर आवाज बुलायेंगे
तू मत पड़ना इस झमेले में!!!
नेकियों की दुकान में
तू ध्यान अपना लगाना ,
स्नेह, और प्रेम की
भर थैली घर ले आना !!!
झूलने को झूले भी
कई तुझे मिलेंगें,
हिचकौले खा कर भी
जीवन के फूल खिलेंगे !!!
रखना हाथ पकड़ कर
कोई अपना ना गुमने पाए ,
संताप रहेगा उम्र भर
क्यों अपनों को छोड़ आए !!!
कुछ छोटे, नन्हें हाथों से
बिक रही होगी मासूमियत ,
कुछ खरीद दयाभाव से
देना उनको भी अहमियत !!!
इस दुनिया के मेले से
वापिस एक दिन जाना है,
याद करे दुनिया तुझको
कुछ कर्म ऐसे कर जाना है,
सोच कर ना जाना ये
बस आइसक्रीम ही खाना है !!!
कीर्ति चौरसिया
जबलपुर (मध्य प्रदेश)