लॉकडाउन और शिक्षा

 

डा.राधा वाल्मीकि

कोरोना ने दस्तक दी और,

लॉकडाउन शुरू हो गया।

सभी उपक्रम बन्द हो गए,

शिक्षालयों में ताला लग गया॥


नौनिहाल सब खुश हो गए,

अब स्कूल नहीं जाना पड़ेगा।

सुबह-सुबह मम्मी की डांट से,

जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा॥


माध्यमिक स्तर के बच्चे,

कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए।

चल रहीं थीं परिषदीय परीक्षाऐं,

प्रश्नपत्र स्थगित हो गए॥


गृह परीक्षाओं का परिणाम भी,

कहीं-कहीं घोषित नहीं था।

प्रत्येक विद्यार्थी पास-फेल की,

चिंता से ग्रसित आशंकित था॥


तभी ऑनलाइन कक्षाऐं,

कुछ दिन बाद शुरू हो गईं।

सुदूर,गरीब,ग्रामीण परिवेश में,

विद्यार्थियों की परेशानियां बढ़ गईं॥


क्योंकि अधिकांश छात्रों के पास,

मंहगे फोन डिजीटल साधन नहीं हैं।

इंटरनेट का डाटा नेटवर्क भी,

सुदूरवर्ती छात्रों तक पहुँचते नहीं हैं॥


यदि किसी के पास फोन है तो वह,

छतों और पेड़ों पर चढ़ रहे हैं।

इंटरनेट के सिंगनल पाने को,

जान जोख़िम में डाल रहे हैं॥


शहरों का भी यही हाल है,

अधिकांश बच्चे बेहाल हैं।

कहीं माता-पिता फोन नहीं देते,

कुछ को फोन न होने का मलाल है॥


कोरोना संक्रमण काल में,

घर किसी के वह जा नहीं सकते।

एक दूसरे से मिलकर अपना,

पाठ्यक्रम पूरा कर नहीं सकते॥


इससे तनाव में आकर बच्चे,

अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं।

निरन्तर फोन देखने से उनमें,

शारीरिक विकार उत्पन्न हो रहे हैं॥


डिजिटल कक्षाऐं संचालन से,

फायदा कम नुकसान अधिक है।

डिजिटल असमानता की स्थिति,

समान शिक्षा में चिंताजनक है॥

कक्षाओं में सभी छात्रों की,

सीखने की प्रवृत्ति एक सी नहीं होती है।

ऑनलाइन संचालित कक्षाऐं भी,

आवश्यकतानुसार शिक्षा नहीं देती हैं॥


यदि सभी के लिए शिक्षा में,

समानता लाना जरूरी है,

तो सत्र रद्द कर नए सिरे से,

पाठ्यक्रम निर्धारण जरूरी है॥


तभी सभी को समान शिक्षा का,

समान अवसर मिल पाएगा।

शिक्षित भारत आत्मनिर्भर बन,

विकसित भारत कहलाएगा॥


*डा.राधा वाल्मीकि*

शिक्षिका, समाजसेविका, कवयित्री

पंतनगर (उत्तराखंड)

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