गोपाल मिश्रा
प्रभु यह कैसी लीला है
कुछ शिकायत कुछ गिला है
जो नहीं मांगा वह भी दिया
जो मांगा क्यों नहीं मिला है.
कोई रोता है कोई हंसता है
कोई हारता कोई जीता है
निर्द्वन्द्व भाव से ढूंढा जिसने,
उसको ही तू तो मिला है.
तुम चांद की छलकती शीतलता,
सूरज की बरसती गर्मी है
साँझ सुबह की स्वर्णिम आभा,
आकाश में फैला रंग नीला है.
यह संसार तुम्हारी काया है
प्राणवायु ही तुम्हारी सांसे हैं
वजह प्रभु आप बतलाएं,
हवा क्यों बना जहरीला है.
आप दयासिंधु करुणानिधान है
सभी संकटों के समाधान हैं
सुख-दुख आपकी माया है,
आगे पीछे चलता सिलसिला है.
अब तो करुणा बरसा दें
अपनी महिमा तो दिखला दें
सांसो का रुकना थम जाए,
लगे संसार अब हर्षिला है.
गोपाल मिश्रा
खंड शिक्षा अधिकारी
खुनियांव, सिद्धार्थ नगर