वक्त से आगे
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चल वक्त से कुछ आगे ,
इक नया जहांँ बनाएंँगे ।
भुला कर गम सभी हम ,
वहांँ पर मुस्कुराएंगे ।
खिलेगी जो बगिया उसमें ,
आ भवरे भी गुनगुनाएंगे।
उसकी खुश्बू से हम अपनी,
नई दुनिया महकाएंगे ।
नहीं होगी जहांँ पतझड़ कभी,
ऐसी वादियांँ लगाएंगे ।
सितारे आके आंँगन में ,
हमारे टीम टिमाएंँगे ।
रखे महफूज हर बला से,
रब आशियां को हमारे ।
कर इबादत हर घड़ी हम ,
उसका शुक्र मनाएंगे ।
चांँद उतरेगा आंँगन में ,
और हम गीत गाएंँगे।
रहकर संग एक दूजे के ,
हम जीवन में बिताएंगे ।
चल वक्त से आगे हम ,
सबको दिखलाएंगे।
हर कदम पर एक दूजे का ,
सहारा हम बन जाएंगे ।।
ज़िन्दगी
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जिम्मेदारियों के बोझ ने ,
बड़ा बना दिया ।
अच्छा था वो बचपन ,
जो ममता की छांँव तले बीता करता था।
नहीं है सुकून अब दो पल का भी,
सब कुछ पाकर भी ।
वह बचपन था यारों,
जो एक टॉफी से मुस्कुरा दिया करता था। आज सब कुछ खरीदने की,
हैसियत रखता फिर भी ।
वह मांँ की लोरी वाली ,
सुकून की नींद नहीं आती ।
आज सब कुछ अपना है फिर भी ,
ना जाने क्यों वह भाई बहनों से ।
छीन कर खाने का सुकून नहीं मिलता ,
सब कुछ पाने की होड़ में ,
असल खजाना खो सा गया है ।
वह बचपन की यादें ,
वह बचपन का आगन अब ना रहा ।
पाकर अब सब कुछ भी ,
आज कितने तन्हा से हैं हम ।
वह सुकून वह खुशी ,
का आलम अब ना रहा ।।
गजल
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गम न थे कम राहे जिंदगी में कभी ,
गमों के दरमियांँ फिर भी मुस्कुराते रहे ।
अश्कों में बीती कई रातें फिर भी ,
सुबह की किरण संग खिलखिलाते रहे।
गुमा न हो अपनों को जख्मों का हमारे, सोचकर यही हर पल गुनगुनाते रहे ।
ना हो शिकवे शिकायत किसी को कभी,
हर जख्म हम अपना छुपाते रहे ।
हर ख्वाब अपने भुला करके हम तो ,
अरमानों को अपने हम दफनाते रहे ।
सोचा शायद मिलजाए सुकू जिंदगी का ,
हर पल अरमानों की कब्र हम बनाते रहें।
औरों की खुशी तलाशने में हम तो ,
अपनी ही मइय्यत सजाते रहे ।
कुछ हासिल ना हुआ खुद को मार कर यूंँ ही, हरपलअपना ही कातिल खुद को बनाते रहे ।
जिन रिश्तो में खुद को भुला ना था चाहा, बेमानी से रिश्तों को ताउम्र अपनाते रहे। जिनकी खातिर जाने क्या-क्या सहा जिंदगी में ,
हर खुशी पर हमारी वो अपना दिल जलाते रहे।
रिश्तों की क्यारी को महकाते हम कैसे ,
जब हर पौधे को ही वह तोड़ कर जाते रहे।
कब तक संभाले खुद को यूंँ ही ,
जब हर पल वह मतलब परस्ती दिखाते रहे ।।