श्री कमलेश झा
गरल पोटली को कर दो खाली अब ना आयेंगे नीलकंठ।
बेसक तुम करलो मनमानी अब न आयेंगे नीलकंठ।।
समुद्र मंथन की तुम्हें जरूरत एकजुट करना तुम्हे समाज।
देव और दानव में भी सामंजस्य बैठाना है तुमको आज।।
अमृत और गरल में भी अंतर करना तुमको आज।
अमृत विष का निपटारा तुमको ही करना है आज।।
सुर और सूर का अंतर तुमको ही करना है आप।
दंभी और अधमी के कर्मो का हिसाब भी रखना आप।।
पिनाक लिए उस त्रिनेत्र से मत रखो आने की आश।
कठिन और विकट परिस्थितियों में अपने को सँभालो आप।।
प्रकृति संग खेल खेल कर भस्मासुर बने हो आप।
अब मोहिनी की आस मत रखना शंकर बैठे गुफा में खास।।
नाच दिखा कर उस भस्मासुर को स्वयं ही जलाना आप।
समाजिक गलर को खुद ही पीना मत रखना उनसे तुम आस।।
कैलाश हिला जब उस रावण से त्रिशूलधारी ने खोला नेत्र।
उथल पुथल मचा रचना में त्रिशूलधारी ने जब खोले नेत्र।।
उस रावण का महत्वाकांक्षा मानव जाति पर घात किया।
आज की मानव जाति ने अपने पर ही घात किया।।
अमृत रास की चाहत में बटोर लाये हैं गरल कलश।
अब निपटारा कैसे हो जब हथ लगा हो गरल कलश।।
कड़क रही गरल की गर्जन जो कानो को दे रहा है दर्द।
नीलकंठ की आस लिए है कब पियेंगे गरल कलश।।
श्री कमलेश झा
नगरपारा भागलपुर
बिहार 9990891378