इंतजार


दीपाली सोढ़ी

इंतजार है उस सुबहा का

जिसमें फ़िर से 

पहले जैसे ताज़गी हो

बेधड़क खेलता बचपन

बेहिचक घूमते वयोवृद्ध

खिलखिलाती हुई जवानी संग रवानी

क्यों रुक गई है जिंदगी? 

क्यों थम गई है बंदगी?। 

इंतजार हैं उस शाम का

जिसमें फ़िर से

पहली जैसी मंद कहानी हो

टफरी पर चाय की प्याली हो

बातें रूहानी,नटखट बेईमानी हो

क्यों थम गई हैं हर शाम? 

क्यों थम गये हैं ठहाकों के जाम?। 

इंतजार हैं उस रात का

जिसमें फ़िर से 

पहली जैसी बेफिक्री हो

नींद हो बेपरवाह सी

सपनों की खुलती हो चाह सी

मुधर लोरी संग,तारों की राह सी

क्यों डरी हुई हैं रातें? 

क्यों सहमें हुए हैं सब नाते?। 

"यकीन" हैं इंतजार 

जल्दी ही खत्म होगा

सुबह में फ़िर से ताज़गी होगी

नई कहानी संग,

जिंदगी की रवानी होगी

चाय की प्याली संग, 

ठहाके,अट्टहास होंगे

मीठे सपनों संग, 

परिवार, दोस्त अपने होंगे

इंतजार लंबा हैं पर वो दौर आयेगा

जब बे डर हो, हर चेहरा मुस्कुरायेगा

दिल को सकून, 

 दोस्तों को गले लगा कर ही आयेगा। 


दीपाली सोढ़ी

गुवाहाटी असम

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