मेरी माँ....

 

ऋतु गुप्ता

मिश्री की डली

तुलसी सी भली 

बनी सिंहनी मेरी माँ



जब जब मुझ पर आँख उठी तो,

दुर्गा रुप धरा मेरी मांँ

जीवन रथ पर,

मेरे हर पथ पर,बनी सारथी मेरी माँ


जननी तू ही

रचनी तू ही

अनोखी सृजनहार मेरी माँ


मैं जो कुछ हूं,

मैं कहां कुछ हूं

तुझसे मेरी 

पहचान मेरी माँ


हर दुख तेरे

मैं उठा जो सकूं

ऐसा दे वरदान तू माँ


क्या क्या मैं लिखूं

कहां तक मैं लिखूं

किस्से तेरे अन्नत मेरी माँ


थक जायेगी ये कलम मेरी

पूरा कर ना पाऊं

गुणगान तेरा , मेरी माँ


मिश्री की डली

तुलसी सी भली

बनी सिंहनी मेरी माँ

मेरी माँ …..


अपनी कलम से

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलंदशहर

उत्तरप्रदेश

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