सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ
चंदन जैसी है तेरी ममता ,
तेरी मिसाल कहां पापा ।
जनम मिले गर फिर धरती पर,
तेरी ही डाल खिलूँ पापा ।
तूने कितनी रातें वारी ,
जाग जाग कर मुझे सुलाया ।
अपने नैनों की ज्योति से,
तूने मुझको जग दिखलाया ।
कैसे चुकाऊँ कर्ज़ प्यार का ,
कितना मलाल करूं पापा ।
तेरी मिसाल कहाँ पापा ।
जनम मिले गर,,,,,
तेरी ही डाल खिलू ,,,,,,।
चल कर खुद तपती राहों में,
तूने मुझको गोद उठाया ।
नज़र लगे ना कभी किसी की
काला टीका सदा लगाया ।
मेर जीवन का तुम हिसाब थे,
किससे सवाल करूं पापा ।
तेरी मिसाल कहाँ पापा ।
जनम मिले गर,,,,
तेरी ही डाल ,,,,,
जीवन पथ से काँटे चुनकर,
तूने सुंदर फूल सजाया ।
बाप कभी भी उफ ना करता ,
औलादों ने भले रुलाया ।
ईश्वर ,पर्वत ,सागर अम्बर ,
तेरी मिसाल कहाँ पापा ।
जनम मिले गर,,
तेरी ही डाल ,,,,,,,,,,,,,,
कितना पावन प्यार तुम्हारा ,
मैं नादां थी समझ न आया ।
रब भी तो ना तुझसे बड़ा है,
अब ये मेरी समझ में आया।
सीने से फिर आज लगा लो
तेरा ख़याल रखूं पापा ।
तेरी मिसाल कहां पापा ।
जनम मिले गर ,,,,।
गीतकार
सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ
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दिनांक 19 05 2021