अपने तप,त्याग ,तपस्या से ,
यह मानव सृष्टि सजाता है ,
सकल विश्व को किया प्रकाशित,
फिर भी विज्ञान डराता है ।टेक।
पंचतत्व से निर्मित काया ,
इसमें ही ब्रह्माण्ड समाया ,
जड़,जग,जंगम भी चाह रहे,
जानें,कैसी होती माया ।
जितना ढूँढा क्षिति,जल,अम्बर ,
हर भेद सघन गहराता है ।
अपने तप,त्याग,तपस्या से
यह मानव सृष्टि सजाता है ।1।
नित नूतन पथ का वरण किया,
निज धर्म सहज संचरण किया ।
हृदय दुखे नहि कभी किसी का -
हो पर हित रत आचरण किया।
युग युग के काल खण्ड में बॅध
यह समय हमें भरमाता है।
अपने तप,त्याग,तपस्या से
यह मानव सृष्टि सजाता है ।2।
धर्मो जनित विज्ञान सहायक ,
उठा तूलिका बन जा नायक।
शस्य श्यामला धरती प्यारी -
मनुज बना तू रहने लायक।
विध्वंसक गतिविधियों से ही,
तुझे तो विज्ञान डराता है ।
अपने तप ,त्याग,तपस्या से ,
यह मानव सृष्टि सजाता है ।3।
गीता पाण्डेय अपराजिता
रायबरेली (उ0प्र0)